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Guru Purnima Wishes Quotes: गुरु पूर्णिमा पर ऐसे करें अपने गुरु को याद; जानें गुरु पूर्णिमा का महत्‍व, मुहूर्त और पूजा विधि

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Happy Guru Purnima 2020, Vyasa Purnima 2020 आज गुरु पूर्णिमा है। उस गुरु की महिमा का बखान करने का दिन, जो हमें भगवान और सृष्टि से रुबरु कराता है। जो हमें जीवन जीना सिखाता है। जो दुनियादारी की हकीकतों से हमें वाकिफ कराता है। गुरु हमारी बंद आंखें खोलता है, ताकि हम अच्‍छा और बुरा का भेद जान सकें।

अखंड मंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरं, तत्पदंदर्शितं एनं तस्मै श्री गुरुवे नम: अर्थात यह श्रृष्टि अखंड मंडलाकार है। बिंदु से लेकर सारी सृष्टि को चलाने वाली अनंत शक्ति का, जो परमेश्वर तत्व है, वहां तक सहज संबंध है।  इस संबंध को जिनके चरणों में बैठ कर समझने की अनुभूति पाने का प्रयास करते हैं, वही गुरु है। जैसे सूर्य के ताप से तपती भूमि को वर्षा से शीतलता और फसल पैदा करने की ताकत मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में शिष्यों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।

आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन सनातन धर्म में गुरु पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरंभ में आती है। इस दिन से चार महीने तक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं।अध्ययन के लिए अगले चार महीने उपयुक्त माने गए हैं। पिछले वर्षों के मुकाबले इस वर्ष गुरु पूर्णिमा का स्वरूप बहुत कुछ बदला हुआ है। कोरोना संक्रमण के कारण गुरु वंदना भी ऑनलाइन हो रही है। समाज के अलग-अलग क्षेत्रों में सफलता के शीर्ष पर बैठे लोग अपने-अपने तरीके से गुरु को याद कर रहे हैं।

गुरु प्रत्येक दिन होते हैं वंदनीय

जीवन में हम जो कुछ भी प्राप्त करते हैं कहीं न कहीं गुरु की कृपा का ही फल है। गुरु का मतलब शिक्षक से नहीं बल्कि गुरु माता-पिता, भाई, दोस्त किसी भी रूप में हो सकते हैं जिनका नाम सुनते ही हृदय में सम्मान का भाव जगता है। सम्मान प्रकट करने के लिए किसी दिन का नहीं बल्कि प्रत्येक दिन गुरु वंदनीय होते हैं। हालांकि, जीवन की आपाधापी में भौतिक रूप जीवन निर्माता के प्रति कृतज्ञता जाहिर करने का मौका नहीं मिलता है। ऐसे में गुरु पूर्णिमा वो खास दिन होता है जहां हम भौतिक एवं मन दोनों ही रूप से गुरु की वंदना, सम्मान करते हैं।

आषाढ मास के पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहा जाता है। इसी दिन चारों वेद व महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्म हुआ था। वेदों की रचना करने के कारण इन्हें वेद व्यास भी कहा जाता है। वेद व्यास के सम्मान में ही आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहा जाता है। इस दिन गुरु पूजन का विशेष विधान है। इस बार गुरु पूर्णिमा पांच जुलाई को पड़ रहा है। संघ के स्वयं सेवक केसरिया ध्वज के समक्ष गुरु पूजन करते हैं। पूजा-अर्चना के लिए मंदिरों में भारी भीड़ होती है। वहीं, इस बार कोराना संक्रमण के कारण मंदिर जहां सूने हैं वहीं सार्वजनिक कार्यक्रम भी नहीं होगा।

किस प्रकार हो रहा आयोजन, ऐसी है तैयारी

ऑनलाइन हो रहा गुरु पूजन कार्यक्रम

भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान देवताओं से भी ऊपर माना गया है। संत कबीर अपने दोहे गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागू पाय। बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय के माध्यम से व्यक्ति के जीवन में गुरु के महत्व को दर्शाया है। संत कबीर कहते हैं गुरु व्यक्ति के जीवन से अंधकार को दूर कर परमात्मा से मिलाता है। ईश्वर की महिमा गुरु के माध्यम से ही जान पाते हैं। अत: गुरु का स्थान देवताओं से भी श्रेयकर है। गुरु पूर्णिमा के दिन विभिन्न सामाजिक व धार्मिक संगठनों की ओर से विशेष आयोजन कर गुरुओं के प्रति सम्मान प्रकट किया जाता है। कोरोना वायरस के कारण इस बार सभी जगहों पर सामूहिक कार्यक्रम को स्थगित कर अपने-अपने घरों में ही गुरु का पूजन करने को कहा जा रहा है। अधिकतर जगहों पर लोग ऑनलाइन गुरु पूजन कार्यक्रम में शामिल होंगे।

गुरु पूर्णिमा पर 20 हजार कार्यकर्ता ऑनलाइन सुनेंगे प्रवचन

राज्य में आनंदमार्गियों की संख्या करीब 20 हजार है। इस बार गुरु पूर्णिमा पर ऑनलाइन सत्संग का आयोजन किया जाएगा। आचार्य सत्यश्रयानंद अवधूत के अनुसार गुरु पूर्णिमा पर सुबह एवं शाम में आनंदमार्ग के पुरोधा प्रमुख आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत का प्रवचन होगा। आनंदमार्गी कार्यक्रम में ऑनलाइन भाग लेंगे। 

पिता पहले गुरु, कार्यक्षेत्र में मिला प्रशांत कुमार का मार्गदर्शन

शिक्षा की शुरुआत ही गुरु वंदना से होती है। कहा गया है, गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वर: गुरु: साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम: यानी गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं। गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं। गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं। सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है। उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करता हूँ। मेरे जीवन में गुरु का यही भूमिका पिता उमापति राय ने निभाई।

उन्होंने मुझे जीवन पथ पर आगे बढऩे के लिए प्रेरित किया। जीवन के किसी भी मोड़ पर जब मुझे निराशा हाथ लगी। पिता ने मुझे संघर्ष की प्रेरणा दी। कार्यक्षेत्र में मुझे प्रशांत कुमार का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। उन्होंने एक लोक सेवक के रूप में हमेशा जनता के बीच रहकर जनता के लिए कार्य करने की प्रेरणा दी। मुझे अपने प्रशिक्षण अवधि में उन्हें साथ कार्य करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वह हमेशा पथ प्रदर्शक की भूमिका में रहे। राय महिमापत रे, उपायुक्त, रांची 

गुरु से मिली  कर्मठता एवं ईमानदारी की सीख

सही राह दिखाने वाला गुरु हो तो जीवन में कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता है। वर्ष 2008 से झारखंड प्रशासनिक सेवा के अधिकारी बना। स्कूल के आचार्य रविंद्र राय से कर्मठता और ईमानदारी की सीख मिली।  इससे जीवन में काफी बदलाव आया। प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने रांची आ गए। दो बार यूपीएससी मेंस की परीक्षा लिखी लेकिन कुछ नंबर से पीछे रह जाते थे। समझ नहीं आता था कि क्या पढ़े, कैसे तैयारी करें। फिर शिक्षक अनिल कुमार मिश्रा के संपर्क हुआ। 

काउंसलिंग के बाद उन्होंने रूचि के अनुसार विषय चुनने को कहा। मुख्य परीक्षा में विषय बदलने की सलाह दी। ऐसा ही किया। इसका आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ा। पहले ही प्रयास में झारखंड सिविल सेवा की परीक्षा अच्छे नंबर से पास किया।  प्रत्येक विद्यार्थी के अंदर असीम क्षमता होती है। गुरु विद्यार्थी के अंदर छिपे प्रतिभा को निखारने का काम करता है। सच्चा गुरु का सानिध्य मिल जाए तो जीवन की हर वाधा स्वत: दूर हो जाती है। अविनाश कुमार, जिला अवर निबंधक 

हाई कोर्ट के जस्टिस केपी देव ने गुरु पूर्णिमा पर अपने गुरुओं को किया  याद

हमारा सौभाग्य रहा कि हमें हर पड़ाव पर अच्छे गुरु मिले। घर में पिता और बड़े भाई से शिक्षा मिली। जब मैैं स्कूल की ओर से खेलकूद के लिए बाहर जाता था, तो लौट कर आने के बाद हमारे गुरु वीके पवार अतिरिक्त कक्षा लगाकर पूरी टीम का सबजेक्ट पूरा कराते थे। इसी तरह दिल्ली के राजहंस कॉलेज में पढ़ाई के दौरान संजय शर्मा हमारी जरूरतों के लिए अपने वेतन तक खर्च कर देते थे। वर्तमान पद तक पहुंचने का सारा श्रेय हमारे गुरुओं को जाता है। यह बातें हाई कोर्ट के जस्टिस केपी देव ने गुरु पूर्णिमा पर अपने गुरुओं को याद करते हुए कहीं।

उन्होंने बताया कि आज उनके चालीस सहपाठी विभिन्न विभागों में उच्चस्थ पदों पर कार्यरत हैैं। इसलिए सरकार व अभिभावक का कर्तव्य है कि वे अच्छे शिक्षकों से अपने बच्चों को शिक्षा दिलाएं। हमारे गुरुओं ने हमें चरित्रवान एवं नैतिक मूल्यों की शिक्षा दी, जिसकी अब तक अमिट छाप है। वकालत के पेशे में आने पर देवघर सिविल कोर्ट में श्री किशोर, विनय कुमार सिन्हा और मदन ठाकुर से वकालत सीखी।

जब पटना हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने गए तो वहां पर शिवकीर्ति सिंह के साथ काम करने का मौका मिला। शिवकीर्ति सिंह उच्चतम न्यायालय के जज पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं। उनकी एक बात हमें अभी तक याद है कि आप उस दिन अच्छे अधिवक्ता बन जाएंगे, जब कोर्ट आपकी बहस पर बिना संकोच ही विश्वास करे। केस हारने या जीतने से अधिवक्ता का कुछ नहीं होता। लेकिन जज के विश्वास को हारने से अधिवक्ता का नुकसान होता है।

जस्टिस केपी देव ने कहा कि शिक्षा व स्वास्थ्य व्यापार नहीं बने, यह देश का आधार है। सरकार इसको लेकर गंभीर रहे। मां-बाप बच्चों के प्रति संवेदनशील रहें और स्कूल या अभिभावक उन्हें तनाव में न रखें। उन्हें सही मार्ग दर्शन, अनुशासित और नैतिक मूल्यों के लिए जागरूक करें। ईमानदारी पूर्वक काम करते हुए हम सभी समाज के प्रति उत्तरदायी बनें।

हाई कोर्ट के जस्टिस राजेश कुमार ने कहा, गुरु ने बताया, तटस्थ होकर सोचो, सत्य तक पहुंच जाओगे

आप अपने गुरु को सही मायने में तभी गुरु दक्षिणा दें पाएंगे, जब उनके दिखाए मार्ग पर चलकर अपना सर्वश्रेष्ठ देंगे। आप किसी भी क्षेत्र में हो, वहां अपना सर्वश्रेष्ठ दें। अच्छा शिष्य बनना भी महत्वपूर्ण होता है। यह बातें गुरुपूर्णिमा पर हाई कोर्ट के जस्टिस राजेश कुमार ने कहीं। उन्होंने कहा कि अभी जिस मुकाम पर मैैं पहुंच पाया हूं उसमें गुरुओं का विशेष योगदान है। जीवन में एक अच्छा शिक्षक ही आपका मार्ग दर्शन करे, यह जरूरी नहीं है। क्योंकि आप किसी घटना, हालात और अपने नजदीकी से मिली सीख को अपना कर अपने लिए सटीक रास्ता चुन सकते हैैं। यह आपके जीवन में टर्निंग प्वाइंट हो सकता है।

उन्होंने बताया कि कानून की पढ़ाई के दौरान दिल्ली विश्वविद्यालय के वीसी उपेंद्र बक्शी उन्हें पढ़ाते थे। उनका व्यक्तित्व अद्भूत था। वे हमेशा कहते थे कि व्यक्ति का नजरिया महत्वपूर्ण होता है और नजरिया बदलते ही व्यक्तित्व भी बदल जाता है। उनकी एक बात आज भी मुझे याद है। किसी मामले में आप तटस्थ होकर सोचेंगे तो आप सत्य के उतने ही नजदीक पहुंचेंगे। वकालत में यह वाक्य मुझे काफी मदद किया और अब इस पद पर आने पर यह वाक्य बहुत सटीक प्रतीत होता है। जस्टिस राजेश कुमार कहते हैैं कि एक बेहतर शिष्य बनना बहुत ही महत्वपूर्ण हैै। आप किसी को गुरु मानकर उंचाइयों को छू पाएंगे। जहां पर शिष्य हैैं, वहीं पर गुरु की भी महत्ता है।

बिना गेरुआ वस्त्र वाले संत ने बदल दी मेरी जिंदगी

बचपन से कॉलेज और रिसर्च तक कई शिक्षक और गुरुओं का आशीर्वाद मिला। सभी का स्थान आज भी मेरे जीवन में ईश्वर तुल्य है। अगर गुरुओं का आशीर्वाद न मिला होता तो आज इस स्थान पर नहीं पहुंच पाता। मगर मेरे जीवन और व्यक्तित्व पर जिस व्यक्ति का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा वो है पंडित राम स्वरुप मिश्र। पंडित जी राजस्थान विवि के प्रोफेसर थे। मेरी उनसे मुलाकात उनकी सेवानिवृत्ति के बाद हुई। उस वक्त मैं जयपुर मंडल में कार्यरत था।

पंडित जी ऐसे व्यक्तित्व हैं जो किसी के लिए कुछ करने से पहले या बाद किसी सम्मान की लालसा नहीं रखते। वो ऐसे व्यक्ति हैं जो बिना गेरुआ वस्त्र के संत हैं। एक बार उन्होंने एक स्पीच लिखी जिसकी टाइपिंग मैंने की। बाद में मुझे पता चला कि वो स्पीच उन्होंने किसी और के लिए लिखी थी। उस स्पीच को उस व्यक्ति ने पुरातत्व कांग्रेस में पढ़ा। वहां घटों तक तालियां बजती रही। मगर सभागार में केवल तीन लोगों को ही पता था कि स्पीच किसकी है। मैं, पंडित जी और वो वक्ता। एसके भगत, अधीक्षण पुरातत्ववेत्ता, रांची मंडल 

शिक्षक ने आगे बढ़कर दी नेतृत्व की प्रेरणा तो पहुंचा इस मुकाम पर

मैंने अपनी स्कूली शिक्षा संत जॉन स्कूल से की है। यहां के फादर बच्चों को अपने पुत्रों की तरह प्रेम करते थे। उनकी बातें केवल किताबी नहीं होती थी। नैतिकता को जीवन में उतारने की प्रेरणा के साथ शिक्षा देते थे। ऐसे ही मेरे एक गुरु थे, फादर अल्बानो टेटे। मेरी अंग्रेजी नौवीं कक्षा तक काफी कमजोर थी। परीक्षा देता और फेल कर जाता। मगर इसके लिए फादर ने व्यक्तिगत रूप से मेरी मदद की। उन्होंने कहा कि तुम्हारी परीक्षा लिखित नहीं ओरल होगी वो भी केवल दो पाठ से।

मेरे जितना संभव था पाठ तैयार करके गया मगर फेल हो गया। फादर ने कहा फेल होना काफी नहीं है। अब जब तक तुम पास नहीं होते तब तक हर दो हफ्ते में तुम्हे परीक्षा देनी है। उन्हें मेरे में नेतृत्व की शक्ति दिखती थी। मगर मैं ज्यादा लोगों को देखकर घबरा जाता था। उन्होंने मुझे बैठाकर समझाया और मेरे अंदर दबे नेतृत्व की शक्ति को जगाया। मैं फादर अल्बानो टेटे को आज भी अपने आदर्श के रुप में देखता हूं। रविंद्र भगत, पूर्व कुलपति, विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग

गुरु ने दिखाई समाज सेवा की राह

मैंने मारवाड़ी कॉलेज से पढ़ाई की है। उस वक्त हमारे एक शिक्षक राम प्रवेश द्विवेदी सामान्य विज्ञान पढ़ाते थे। मैंने उनका प्रिय शिष्य था। उनका मेरे जीवन और व्यक्तिव पर उनका काफी प्रभाव पड़ा। उन्होंने हमेशा दूसरों की मदद की शिक्षा दी। मुझे उनके द्वारा किये कई परोपकार के काम आज भी याद है। वो बच्चों को केवल किताबी शिक्षा देने में विश्वास नहीं करते थे। बल्कि समाज के बीच रहने लायक एक प्रेरक व्यक्तित्व बनाते थे। ये उनकी ही शिक्षा है कि आज मैं समाज के बीच पहुंचकर लोगों की पीड़ा में मदद करने से पीछे नहीं हटता। वो मुझसे इतना प्रेम करते थे कि मेरे स्कूल से पास कर जाने के बाद भी वो मेरे बाद के बच्चों को मेरे नाम लेकर उदाहरण देते थे। हरविंदर वीर सिंह, सेवानिवृत्त प्रोफेसर, मारवाड़ी कॉलेजs

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